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हिंदी कहानियां - भाग 120

दृष्टिकोण व्यक्तित्व का आईना है


दृष्टिकोण व्यक्तित्व का आईना है   एक धर्मात्मा ने जंगल में एक सुंदर मकान बनाया और उद्यान लगाया, ताकि उधर आने वाले उसमें ठहरें और विश्राम करें। समय- समय पर अनेक लोग आते और ठहरते। दरबार हरेक आने वाले से पूछता ‘‘आपको यहाँ कैसा लगा। बताइए मालिक ने इसे किन लोगों के लिए बनाया है।’’ आने वाले अपनी- अपनी दृष्टि से उसका उद्देश्य बताते रहे। चोरों ने कहा- ‘‘एकांत में सुस्ताने, योजना बनाने, हथियार जमा करने और माल का बँटवारा करने के लिए।’’ व्यभिचारियों ने कहा- ‘‘बिना किसी रोक- टोक और खटके के स्वेच्छाचारिता बरतने के लिए।’’ जुआरियों ने कहा,- ‘‘जुआ खेलने और लोगों की आँखों से बचे रहने के लिए।’’ कलाकारों ने कहा- ‘‘एकांत का लाभ लेकर एकाग्रता पूर्वक कला का अभ्यास करने के लिए।’’ संतो ने कहा- ‘‘शांत वातावरण में भजन करने और ब्रह्मलीन होने के लिए।’’ कुछ विद्यार्थी आए, उनने कहा- ‘‘शांत वातावरण में विद्या अध्ययन ठीक प्रकार होता है।’’ हर आने वाला अपने दृष्टिकोण द्वारा अपने कार्यों की जानकारी देता गया। दरबान ने निष्कर्ष निकाला- ‘‘जिसका जैसा दृष्टिकोण होता है, वैसा ही उसका व्यक्तित्व होता है।’’

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